भोजन को भली-भांति चबाने तथा ग्रहण किये गये आहार का पाचन अच्छी प्रकार से होने के लिए दांतो की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बोलने में भी दांतों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। दांत हमारे मुंह में पाई जाने वाली सफेद रंग की संरचना होती है। जो मुस्कुराहट तथा मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने का भी कार्य करती है। इसके अतिरिक्त भोजन को चबाने व पीसने का कार्य भी दांतों के द्वारा ही किया जाता है। दांत उतकों से बने होते हैं। जिनका घनत्व तथा कठोरता भिन्न-भिन्न होती है। दांतों का बाहरी आवरण इनेमल होता है। यह हमारे शरीर का सबसे कठिन हिस्सा होता है। जिसमें कैल्शियम मुख्य रूप से होता है। इसके अतिरिक्त डेंन्टिम तथा सीमेंटम ऊतकों से दांत की संरचना का निर्माण होता है। समय के साथ-साथ दांतो की समस्याएं भी बढ़ती गई।
दांतों की समस्याएं -
दांत
दर्द- दांत दर्द होना एक सामान्य समस्या है। आयुर्वेद में इसका कारण वायु को माना गया है। क्योंकि दर्द की उत्पत्ति बिना वायु के नहीं हो सकती। संक्रमित दांत की नर्व का उत्तेजित होना दांतों में दर्द का कारण बताया जाता है। साथ ही पल्प में संक्रमण या मसूड़ों की बीमारी के कारण भी दांत दर्द हो सकता है।
दांत दर्द के उपचार- दांत दर्द का उपचार कारण के अनुसार करना चाहिए। यदि कारण स्थानिक हैं तब लौंग का तेल दर्द में राहत देता है इसमें आयुर्वेदानुसार अग्निकर्म करने का भी विधान बताया गया है। लौंग के तेल को दांत के दर्द की जगह पर लगाने से बहुत ही लाभ मिलता है।
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दांतों में टार्टर्स- आजकल टार्टर्स की समस्या भी दांतों में बहुत हो रही है। दांतो को उचित तरीके से साफ ना करने के कारण दातों में स्थित मल जम कर कड़ा हो जाता है। जिससे दांतों का वास्तविक गुण नष्ट हो जाता है इस कारण मुंह से दुर्गंध आने लगती है।
उपचार- इस परिस्थिति में मसूड़ों को बिना क्षति पहुंचाये क्लीनिंग करना चाहिए। लाक्षा चूर्ण में शहद मिलाकर हल्के हल्के हाथों से दांत और मसूड़ों पर मालिश करना चाहिए। शुद्ध स्फटिका तथा टंकण भस्म का प्रयोग भी काफी लाभदायक है।
दांतों का टूटना- आम बोलचाल की भाषा में इसे दंतक्षय भी कहते हैं। इसमें दांतों का ऊपरी आवरण इनेमल टूट जाता है। जिसका कारण सामान्यतया अम्ल पदार्थों का अधिक सेवन करना या दांतों में शर्करा की उपस्थिति से जीवाणुओं द्वारा लैक्टिक एसिड का निर्माण होना है। जो इनेमल को हानि पहुंचाते हैं। इसके कारण कभी-कभी दांतों में झनझनाहट भी पाई जाती है। जिसमें गर्म या ठंडा भोजन करने, ठंडी हवा में सांस लेने से संवेदनशील दर्द होता है। अत्यधिक कठिन भोज्य पदार्थों का सेवन, दांतो को पीसना या क्लीनिंग कराना भी इसका प्रमुख कारण हो सकता है। आयुर्वेद में दांतो की संवेदनशीलता को दंत हर्ष के रूप में बताया गया है तथा वायु को इसका कारण कहा गया है।
उपचार- दंत क्षय को रोकने के लिए गुनगुने पानी में दो चुटकी नमक डालकर कुल्ला करना चाहिए। तथा एक कप गुनगुने पानी में चार पांच बूंद नींबू की डालकर कुल्ला करने से बहुत लाभ होता है।
मसूड़ों में सूजन- विटामिन सी की कमी अर्थात नींबू आदि खट्टे द्रव्यों का सेवन ना करने से मसूड़ों में सूजन आ जाती है। मसूड़े स्पंजी हो जाते हैं। जिसके फलस्वरुप मसूड़ों में अचानक रक्त निकलने लगता है एवं मसूड़े दुर्गंधयुक्त काले मल युक्त नरम होकर गलने और सड़ने लगते हैं। इसका कारण आयुर्वेद में कफ तथा रक्त को बताया गया है।
उपचार- इसके इसके उपचारार्थ आप अपने भोजन में विटामिन सी युक्त द्रव्य शामिल करें। रक्त मोक्षण करवाना चाहिए। मसूड़ों पर प्रियंगु मुस्ता तथा त्रिफला का प्रयोग करें। दशन संस्कार चूर्ण का मंजन बबूल की छाल का क्वाथ तथा खदिरादि वटी को चूसने से बहुत लाभ होता है। इस बीमारी में आरोग्यवर्धिनी वटी का प्रयोग तथा इरिमेदादि तेल का गंडूष भी काफी लाभदायक है।
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पायरिया- पायरिया दांतो की एक गंभीर बीमारी है। जो दांतो के आसपास की मांसपेशियों को संक्रमित करके उन्हें हानि पहुंचाती है। दांतों की साफ सफाई में कमी होने से जो बीमारी सबसे ज्यादा होती है उसका नाम है पायरिया। इस रोग में मसूड़े पिलपिले और खराब हो जाते हैं। जिसके कारण मसूड़ों से खून और मवाद आता है। सांसों की बदबू भी पायरिया की वजह से होती है। जब आप बोलते हैं तो सामने वाले को बदबू महसूस होती है जिसके कारण आपको शर्म उठानी पड़ती है। पायरिया के कारण दांत समय से पहले गिर जाते हैं। अगर किसी भी व्यक्ति को पायरिया हो जाए तो समय से इलाज ना होने के कारण मुंह का कैंसर भी होने की संभावना बढ़ जाती है।
बचाव और इलाज- ऐसी परिस्थिति में कटुु द्रव्यों का कवल धारण करना चाहिए। दशन संस्कार चूर्ण इरिमेदादि तेल का प्रयोग करना चाहिए। दांतों का महत्व समझते हुए इसी कारण आयुर्वेद में दातुन करने के लिए बताया गया है। जिसमें बबूल व नीम महत्वपूर्ण है। ऐसे वृक्षों की पतली शाखा के अग्र भाग को कूट-कूट कर कूंची बनाकर प्रतिदिन दो समय मसूड़ों का बचाव करते समय दातुन करना चाहिए। उनका लाभ बताते हुए कहा गया है कि प्रतिदिन दातून का प्रयोग मुख की दुर्गंध को नष्ट करता है तथा जिहवा के मल को निकाल कर साफ कर करता है।
100 ग्राम गेरू, 10 ग्राम फिटकरी, 10 ग्राम लौंग, 10 ग्राम इलायची ,10 ग्राम काला नमक व 100 ग्राम बबूल की छाल को खूब कूट कर महीन सा पाउडर बना लें। और इससे किसी शीशी या डिब्बी में रख लें। प्रातः काल इस मंजन को को अंगुलियों से दांतों और मसूड़ों पर मालिश करें। दो-तीन मिनट बाद गुनगुने पानी से कुल्ला करें। पायरिया में बहुत ही लाभ होगा।
देसी हल्दी का दो चुटकी पाउडर ले लें और उसी में एक चुटकी नमक मिला लें और फिर इन दोनों में पांच बूंद घर का शुद्ध सरसों का तेल मिलाकर प्रतिदिन सुबह दांतों और मसूड़ों पर अंगुलियों से मालिश करें। करीब 10 मिनट बाद गुनगुने पानी से मुंह साफ कर लें। नमक, सरसों के तेल और हल्दी में पाए जाने वाले प्राकृतिक तत्व पायरिया को जड़ से खत्म कर देंगे।
दांतों की समस्याएं -
दांत
दर्द- दांत दर्द होना एक सामान्य समस्या है। आयुर्वेद में इसका कारण वायु को माना गया है। क्योंकि दर्द की उत्पत्ति बिना वायु के नहीं हो सकती। संक्रमित दांत की नर्व का उत्तेजित होना दांतों में दर्द का कारण बताया जाता है। साथ ही पल्प में संक्रमण या मसूड़ों की बीमारी के कारण भी दांत दर्द हो सकता है।
दांत दर्द के उपचार- दांत दर्द का उपचार कारण के अनुसार करना चाहिए। यदि कारण स्थानिक हैं तब लौंग का तेल दर्द में राहत देता है इसमें आयुर्वेदानुसार अग्निकर्म करने का भी विधान बताया गया है। लौंग के तेल को दांत के दर्द की जगह पर लगाने से बहुत ही लाभ मिलता है।
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दांतों में टार्टर्स- आजकल टार्टर्स की समस्या भी दांतों में बहुत हो रही है। दांतो को उचित तरीके से साफ ना करने के कारण दातों में स्थित मल जम कर कड़ा हो जाता है। जिससे दांतों का वास्तविक गुण नष्ट हो जाता है इस कारण मुंह से दुर्गंध आने लगती है।
उपचार- इस परिस्थिति में मसूड़ों को बिना क्षति पहुंचाये क्लीनिंग करना चाहिए। लाक्षा चूर्ण में शहद मिलाकर हल्के हल्के हाथों से दांत और मसूड़ों पर मालिश करना चाहिए। शुद्ध स्फटिका तथा टंकण भस्म का प्रयोग भी काफी लाभदायक है।
दांतों का टूटना- आम बोलचाल की भाषा में इसे दंतक्षय भी कहते हैं। इसमें दांतों का ऊपरी आवरण इनेमल टूट जाता है। जिसका कारण सामान्यतया अम्ल पदार्थों का अधिक सेवन करना या दांतों में शर्करा की उपस्थिति से जीवाणुओं द्वारा लैक्टिक एसिड का निर्माण होना है। जो इनेमल को हानि पहुंचाते हैं। इसके कारण कभी-कभी दांतों में झनझनाहट भी पाई जाती है। जिसमें गर्म या ठंडा भोजन करने, ठंडी हवा में सांस लेने से संवेदनशील दर्द होता है। अत्यधिक कठिन भोज्य पदार्थों का सेवन, दांतो को पीसना या क्लीनिंग कराना भी इसका प्रमुख कारण हो सकता है। आयुर्वेद में दांतो की संवेदनशीलता को दंत हर्ष के रूप में बताया गया है तथा वायु को इसका कारण कहा गया है।
उपचार- दंत क्षय को रोकने के लिए गुनगुने पानी में दो चुटकी नमक डालकर कुल्ला करना चाहिए। तथा एक कप गुनगुने पानी में चार पांच बूंद नींबू की डालकर कुल्ला करने से बहुत लाभ होता है।
मसूड़ों में सूजन- विटामिन सी की कमी अर्थात नींबू आदि खट्टे द्रव्यों का सेवन ना करने से मसूड़ों में सूजन आ जाती है। मसूड़े स्पंजी हो जाते हैं। जिसके फलस्वरुप मसूड़ों में अचानक रक्त निकलने लगता है एवं मसूड़े दुर्गंधयुक्त काले मल युक्त नरम होकर गलने और सड़ने लगते हैं। इसका कारण आयुर्वेद में कफ तथा रक्त को बताया गया है।
उपचार- इसके इसके उपचारार्थ आप अपने भोजन में विटामिन सी युक्त द्रव्य शामिल करें। रक्त मोक्षण करवाना चाहिए। मसूड़ों पर प्रियंगु मुस्ता तथा त्रिफला का प्रयोग करें। दशन संस्कार चूर्ण का मंजन बबूल की छाल का क्वाथ तथा खदिरादि वटी को चूसने से बहुत लाभ होता है। इस बीमारी में आरोग्यवर्धिनी वटी का प्रयोग तथा इरिमेदादि तेल का गंडूष भी काफी लाभदायक है।
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पायरिया- पायरिया दांतो की एक गंभीर बीमारी है। जो दांतो के आसपास की मांसपेशियों को संक्रमित करके उन्हें हानि पहुंचाती है। दांतों की साफ सफाई में कमी होने से जो बीमारी सबसे ज्यादा होती है उसका नाम है पायरिया। इस रोग में मसूड़े पिलपिले और खराब हो जाते हैं। जिसके कारण मसूड़ों से खून और मवाद आता है। सांसों की बदबू भी पायरिया की वजह से होती है। जब आप बोलते हैं तो सामने वाले को बदबू महसूस होती है जिसके कारण आपको शर्म उठानी पड़ती है। पायरिया के कारण दांत समय से पहले गिर जाते हैं। अगर किसी भी व्यक्ति को पायरिया हो जाए तो समय से इलाज ना होने के कारण मुंह का कैंसर भी होने की संभावना बढ़ जाती है।
बचाव और इलाज- ऐसी परिस्थिति में कटुु द्रव्यों का कवल धारण करना चाहिए। दशन संस्कार चूर्ण इरिमेदादि तेल का प्रयोग करना चाहिए। दांतों का महत्व समझते हुए इसी कारण आयुर्वेद में दातुन करने के लिए बताया गया है। जिसमें बबूल व नीम महत्वपूर्ण है। ऐसे वृक्षों की पतली शाखा के अग्र भाग को कूट-कूट कर कूंची बनाकर प्रतिदिन दो समय मसूड़ों का बचाव करते समय दातुन करना चाहिए। उनका लाभ बताते हुए कहा गया है कि प्रतिदिन दातून का प्रयोग मुख की दुर्गंध को नष्ट करता है तथा जिहवा के मल को निकाल कर साफ कर करता है।
100 ग्राम गेरू, 10 ग्राम फिटकरी, 10 ग्राम लौंग, 10 ग्राम इलायची ,10 ग्राम काला नमक व 100 ग्राम बबूल की छाल को खूब कूट कर महीन सा पाउडर बना लें। और इससे किसी शीशी या डिब्बी में रख लें। प्रातः काल इस मंजन को को अंगुलियों से दांतों और मसूड़ों पर मालिश करें। दो-तीन मिनट बाद गुनगुने पानी से कुल्ला करें। पायरिया में बहुत ही लाभ होगा।
देसी हल्दी का दो चुटकी पाउडर ले लें और उसी में एक चुटकी नमक मिला लें और फिर इन दोनों में पांच बूंद घर का शुद्ध सरसों का तेल मिलाकर प्रतिदिन सुबह दांतों और मसूड़ों पर अंगुलियों से मालिश करें। करीब 10 मिनट बाद गुनगुने पानी से मुंह साफ कर लें। नमक, सरसों के तेल और हल्दी में पाए जाने वाले प्राकृतिक तत्व पायरिया को जड़ से खत्म कर देंगे।
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